मुख्यातिथि प्रो. बी आर. काम्बोज ने कहा की समय-समय पर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित की जा रही कार्यशालाएं शोधार्थियों के ज्ञान में वृद्धि व अंतर्राष्ट्रीय एक्सपोजर बढ़ाने में सहायक है। उन्होंने प्रतिभागियों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में कार्यशालाओं में भाग लेकर सीखने और प्राप्त ज्ञान व नवाचारों को व्यवहारिकता में लाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ आपसी सहयोग के लिए समझौते किए, जिनके तहत वैज्ञानिक और शोधार्थी विदेश में जाकर आधुनिक तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण ले सकें और विदेशी वैज्ञानिक इस विश्वविद्यालय में आकर नई तकनीकें व जानकारी प्राप्त कर सकें। प्रो. काम्बोज ने देश-विदेश के संस्थानों से आए प्रख्यात वैज्ञानिकों का आभार जताया। इस दौरान अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला में कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय से आए वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ देवकी नंदन और पोलैंड के वारसॉ विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. टकाओ इशिकाव ने प्रशिक्षकों की भूमिका निभाई।
शोधार्थी समय का सदुपयोग कर अनुसंधान पर दे जोर : डॉ. देवकी नंदन

कनाडा से पहुंचे अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षक डॉ देवकी नंदन ने अपने अनुभव साझा करते हुए कार्यशाला में भाग ले रहे शोधार्थियों को समय का सदुपयोग और नया सोचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि आधुनिक जैव रासायनिक और जीनोमिक उपकरणों के अनुप्रयोग ने कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला दी है जो कृषि वैज्ञानिकों को उन्नत गुणात्मक व मात्रात्मक उपज विशेषताओं के साथ नई फसल किस्मों को विकसित करने में सक्षम बनाती है। उन्होंने कहा कि इन आधुनिक तकनीकों ने फसलों की उपज में वृद्धि व विकास में गहरी समझ प्रदान करने में मदद की है, जिससे फसलों का विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों में बेहतर अनुकूलन संभव हो सकें।
विद्यार्थियों के बिना संस्थान अधूरा : डॉ. टकाओ
पोलैंड से पहुंचे डॉ. टकाओ इशिकावा ने कहा कि कार्यशाला में आयोजित तकनीकी सत्रों में दिए व्याख्यानों से प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के जीन और एंजाइमों की पहचान कर फसलों के लक्षणों में सुधार करने के लिए सक्षम बनाएगा। उन्होंने विश्वविद्यालय के शोधार्थियों के कौशल की सराहना करते हुए कहा कि विद्यार्थियों के बिना हर संस्थान अधूरा है। जरूरत है तो इन विद्यार्थियों को समय के साथ अपने आप को अपडेट करने व अपने ज्ञान, नवाचारों, प्रौद्योगिकियों और कौशल का विकास करने पर ध्यान देना चाहिए। इस कार्यशाला के आयोजक सचिव एवं बायोकेमिस्ट्री की विभागाध्यक्ष डॉ. जयंती टोकस, डॉ  विनोद गोयल और डॉ अनुज राणा थे।
दूसरी 10 दिवसीय कार्यशाला में ब्राजील के ब्रासीलिया विश्वविद्यालय में विदेशी भाषाएं और अनुवाद अध्ययन विभाग में कार्यरत प्रोफेसर वाल्मी हैजे फग्गिओं अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षक के रूप में मौजूद रही। उन्होंने कहा कि अनुवाद संस्कृतियों के बीच कड़ी का काम करता है और नई जानकारी, ज्ञान और विचारों को दुनिया भर में फैलाता है। अनुवाद अध्ययन लोगों को कौशल विकसित करने और भाषा को सुधारने में मदद करता है। उन्होंने प्रतिभागियों से नए क्षेत्र में नए विचार के साथ प्रोजेक्ट बनाने के लिए भी प्रेरित किया।

इस कार्यशाला के आयोजन सचिव भाषा एवं हरियाणवी संस्कृति विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. अपर्णा और डॉ. पूनम मोर रही। समापन समारोह में पाठ्यक्रम निदेशक और मौलिक विज्ञान और मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. नीरज कुमार ने सभी का स्वागत किया और कार्यशालाओं की रिपोर्ट प्रस्तुत की। अंत में पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. के.डी शर्मा ने धन्यवाद किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के समस्त महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक व शोधार्थियों के अलावा देश-विदेश के संस्थानों से आए प्रख्यात वैज्ञानिक भी मौजूद रहे।

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